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मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह संघर्ष की माटी से निकले कोहिनूर

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ठाकुर सुखविंदर सिंह हिमाचल राजनीति मैं संघर्ष की माटी से निकले कोहिनूर……………………………   सुक्खू लड़ना भी जानते हैं और जीतना भी, हर मोर्चे पर चली सियासी चाल रही कामयाब  शिमला. विमल शर्मा ………………………………..मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह हिमाचल राजनीति की सियासत को भलीभांति पहचानते हैं और देवभूमि की जनता की नवज को भी पढ़ते हैं अपने 40 सालों के राजनीतिक सफर में संघर्ष की राजनीति से सत्ता की कुर्सी पर विराजमान ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने साबित किया है कि लड़ना भी जानते हैं और जीतना भी जानते हैं। मुख्यमंत्री के इस्तीफे की खबरों की बीच जब सुक्खू मीडिया के तीखे तेवरों के साथ आए और दहाड़ कर बोले, मैं आम परिवार से आया हूं, मैं संघर्ष करुंगा और जीतूंगा, भाजपा की षड़यंत्र कामयाब नहीं होगा। आज सुक्खू ने साबित किया कि वह वाकई संघर्ष की माटी से निकले हैं। राज्यसभा चुनाव में मतदान के बाद आए सियासी संकट के सुक्खू पूरी तरह बाहर निकल गई है। हाईकमान के द्वारा भेजे गए आर्ब्जवर ने सभी से बातचीत कर संकट को टाल दिया है। अब कांग्रेस सरकार पर कोई संकट नहीं है।  राज्यसभा के लिए हुए मतदान के बाद आए परिणाम में प्रदेश में कांग्रेस का बहुमत होने के बाद भी कांग्रेस प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के 6 विधायकों ने भाजपा प्रत्याशी को मतदान किया। इसी दौरान विधानसभा का बजट सत्र भी चल रहा है और विधानसभा में बजट पास होना था। सब तरफ यही अनुमान था कि अब बजट बहुमत के साथ पास नहीं होगा और सरकार गिर जाएगी। सुक्खू ने अपनी सोची समझी रणनीति के तहत विधानसभा में बजट भी पास किया और सरकार को भी बचा लिया।  राज्यसभा में हुए मतदान के बाद जब बागी विधायकों का भाजपा नेताओं के साथ जाना और हरियाणा में सरकार गेस्ट हाउस में रुकने के समाचार आए तो ऐसा लगा कि अब सरकार चली जाएगी। 6 विधायकों के साथ आगे और विधायक भी जा सकते हैं। इसी बीच कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। विक्रमादित्य के साथ रामपुर और रोहड़ू के विधायक भी नजर आए। जिससे ऐसा लगा कि अब कांग्रेस में बागियों की संख्या बढ़ने वाली है। लेकिन अब मुख्यमंत्री सुक्खू पूरी तरह अलर्ट मोड में थे, जिससे उन्होंने आगे की बगावत को रोक लिया। एक समय ऐसा लगने लगा था कि भाजपा का ऑपरेशन लोटस कामयाबी की ओर बढ़ रही है, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सुक्खू ने अपनी पूरी ताकत के साथ कांग्रेस विधायकों को एकजुट किया और दो दिन तक एकजुटता के साथ आगे बढ़े।  कांग्रेस के 6 बागी विधायकों की अब विधानसभा की सदस्यता खत्म हो चुकी है। जिससे सदन में अब 68 में से 62 विधायक ही हैं। जिसमें कांग्रेस के पास वर्तमान में 34 विधायक हैं और भाजपा के पास 25 विधायक हैं। निर्दलीय 3 विधायक चुनाव के पहले तक तो कांग्रेस सरकार के साथ नजर आते रहे लेकिन राज्यसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा के पक्ष में मतदान किया। जिससे विपक्ष के कुल 28 विधायक हैं। जिससे अभी कांग्रेस सरकार के पास बहुमत है। विधानसभा की सदस्यता खो चुके 6 विधायकों का क्या होगा, इस बारे में अभी इंतजार करना होगा। सदस्यता खो चुके विधायक विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ अदालत जाएंगे। अदालत के फैसले के बाद भी कुछ साफ होगा। वहीं बागी विधायकों के बारे में सुक्खू कह चुके हैं कि वह भाई हैं, आएंगे, तो उनकी गलत को माफ किया जा सकता है। सुक्खू की इस बात से आगे संभावना है कि बागी नेताओं के लिए अभी कांग्रेस के दरवाजे बंद नहीं हुए हैं। लेकिन इस बगावत के साथ सुक्खू को भी कई सीख मिल गई हैं। सुक्खू सरकार बचाने में कामयाब हो गए हैं लेकिन अब मंत्रियों, विधायकों और संगठन नेताओं की नाराजगी दूर करना भी एक चुनौती है। हालांकि सुक्खू ने हाईकमान के साथ चर्चा कर अब कमेटी का गठन हो गया है, जो सत्ता और संगठन में बेहतर तालमेल कर समस्याओं का समाधान करेगी। जिससे आगे ऐसे संकट का सामना न करना पड़े।

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