आधे से ज्यादा डूबने के बाद भी अडिग खड़ा है “पंचवक्त्र महादेव मंदिर” जाने इस मंदिर का प्राचीनतम इतिहास…….
28 सालों बाद ब्यास नदी ने जब एक बार फिर से रूद्र रूप धारण किया तो मंडी में हालात बद से बदतर हो गए। 48 घंटे से ज्यादा बरसी इस आफत की बारिश से जहां सभी नदी-नाले उफान पर थे, वहीं खतरे के निशान से कहीं ऊपर जाकर बह रही ब्यास अपने साथ सब कुछ बहा ले गई। लेकिन ब्यास के तांडव के बीच मंडी शहर में सुकेती और ब्यास के संगम पर बना पंचवक्त्र मंदिर को आंच भी नहीं आई है। यह मंदिर आधे से ज्यादा ब्यास नदी में डूब गया था और इसका ऊपर का ही हिस्सा डूबने से बचा था।करीब 2 लाख क्यूसिक पर सेकंड पानी पंडोह डैम से छोड़े जाने के बावजूद भी ब्यास नदी में उठी लहरें पंचवक्त्र का कोई नुकसान नहीं कर पाई।भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध यह मंदिर पुरानी मंडी और नए मंडी शहर के बीचोबीच ब्यास व सुकेती नदी के संगम पर है। ब्यास नदी के तट पर बना यह मंदिर हर मानसून सीजन में एक- दो बार आधे से ज्यादा जलमग्न हो जाता है।
राजा अजबर सेन ने की थी पंचवक्त्र महादेव मंदिर की स्थापना
पंचवक्त्र महादेव मंदिर की स्थापना मंडी के शासक अजबर सेन ने की थी। मन मोहन की किताब ‘हिस्ट्री ऑफ द मंडी स्टेट’ में जिक्र है कि 1717 में ब्यास में आई बाढ़ में इस मंदिर को नुकसान पहुंचा और पंचमुखी शिव प्रतिमा बह गई। बाद में राजा सिद्ध सेन (शासनकाल 1684 से 1727) ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर नई प्रतिमा प्रतिष्ठित की, लेकिन पुरानी प्रतिमा का क्या हुआ आज तक रहस्य है। मंडी से कुछ किलोमीटर दूर ब्यास नदी के किनारे जोगिंद्र नगर के लांगणा क्षेत्र में पंचमुखी शिव मंदिर है।
लोगों का कहना है कि यह प्रतिमा ब्यास नदी में बहकर आई थी। कई वर्षों तक यह मूर्ति खुले आसमान के नीचे ही रही। बाद में एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर इसे मंदिर के भीतर स्थापित किया गया है। क्षेत्र में फैली किवदंतियों के अनुसार यह मूर्ति पंचवक्त्र महादेव मंदिर से ही बहकर वहां पहुंची थी, हालांकि इसके कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है।
बता दें कि करीब 3 दिन तक दिन तक हुए महाजल प्रलय के कारण कुल्लू से लेकर मंडी जिला तक ब्यास नदी के तांडव के कई पुल ध्वस्त हो गए हैं। इस बारिश के कारण करोड़ों रुपए का नुकसान भी जिला में हुआ है। पंचवक्त्र महादेव मंदिर के अंदर व बाहर मिट्टी व गाद भरी पड़ी है। हालांकि मंदिर की बाउंड्री वॉल की दीवारों को थोड़ा बहुत नुकसान जरूर पहुंचा है। बावजूद इसके पंजवक्त्र मंदिर और 1888 में बना विक्टोरिया पुल आज भी अडिग खड़ा है।