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उप चुनावों के बाद कांग्रेस अध्यक्ष अलग-थलग पड़े

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कांग्रेस नेताओं में वर्चस्व की जंग छिड़ी

पार्टी अध्यक्ष को नेताओं को एकजुट करने में नाकाम आज तक किसी के खिलाफ भी अनुशासन कार्यवाही नहीं

शिमला, विमल शर्मा।

हिमाचल कांग्रेस नेताओं में वर्चस्व की जंग छिड़ गई है कांग्रेस नेता इतने बेलगाम हो गए हैं कि अपने अलग-अलग गुट बनाकर दिल्ली में अपना पक्ष रख रहे हैं हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौड़ अपने कार्यकाल को बेमिसाल बता रहे हैं हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष अपने पूरे कार्यकाल में किसी भी नेता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं कर पाए जबकि पार्टी के भीतर पोस्टर कांड से लेकर नेताओं के अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष के समानांतर पत्रकार वार्ता में की जाती है जिसको पार्टी विरोधी नहीं माना जाता इसे पार्टी अध्यक्ष की कमजोरी कहे या मजबूरी यह तो पार्टी ही जाने लेकिन हिमाचल कांग्रेस के सह प्रभारी बिट्टू ने तो हाल ही में या कह दिया कि कांग्रेस को कांग्रेसी ही हर आती है इसलिए सभी को एकजुट होकर काम करना पड़ेगा इससे साफ होता है कि कांग्रेस आलाकमान के पास पूरी सूचना है कि हिमाचल कांग्रेसमें पार्टी नेतृत्व कमजोर है जिसको सशक्त करने के लिए ऐसे नेता की तलाश हो रही है जो पार्टी मैं व्यवहारिक तौर पर पकड़ रख सके और उसका जनता में भी छवि बेहतर हो बहरहाल जो भी है वर्तमान में कांग्रेस की स्थिति इस तरह है कि उपचुनाव के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 21 से बढ़कर 22 हो गई है। कोटखाई कांग्रेस ने बीजेपी से छीन ली है। अर्की व फतेहपुर पहले भी कांग्रेस की थी, उपचुनाव में भी बरकरार रही हैं। चलों अब आपको बताते हैं कि इन 22 विधायकों में से इस वक्त पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू नौ विधायकों को अपने साथ लेकर चल रहे हैं। खुद को मिलाकर सुक्खू के पाले में दस विधायक हैं,यानी सुक्खू नंबर वन पर हैं। सुक्खू के साथ ठाकुर,उना से सतपाल रायजादा, अर्की से संजय अवस्थी, नालागढ़ से लखविंदर राणा,कुसुम्पटी से अनिरुद्ध सिंह, कोटखाई से रोहित ठाकुर व किन्नौर से जगत सिंह नेगी शामिल हैं। अब दूसरे नंबर पर इसके बाद नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री हैं जिनके पाले में उन्हें खुद को मिलाकर पांच विधायक हैं। इनमें डलहौजी से आशा कुमारी, पालमपुर से आशीष बुटेल, श्री रेणुका जी से विनय कुमार,फतेहपुर से भवानी पठानिया शामिल हैं। विक्रमादित्य सिंह आते हैं, जिनके खाते में तीन विधायक गिने जा रहे हैं, उन्हें खुद को मिलाकर ये संख्या चार हो जाती है। विक्रमादित्य सिंह के पाले में आने वालों में रामपुर से नंदलाल, रोहडू से मोहन लाल ब्राक्टा व बड़सर से इंद्रदत्त लखनपाल गिने जाते हैं। इस तरह ये संख्या 19 हो जाती है। जबकि तीन विधायक ऐसे हैं जो अकेले ही चले हुए हैं, इनमें श्री नयना देवी से रामलाल ठाकुर, सोलन से कर्नल धनीराम शांडिल व शिलाई से हर्षवर्धन चौहान के नाम आते हैं। इनमें भी कर्नल धनीराम शांडिल अंदर खाते सुखविंदर सिंह सुक्खू के साथ बताए जा रहे हैं, जबकि हर्षवर्धन चौहान का झुकाव भी सुक्खू के प्रति हो सकता है। कहा तो ये भी जा रहा है कि बड़सर से इंद्रदत्त लखनपाल भी सुक्खू की तरफ गलबहियां डाल रहे हैं। अब एक परेड तो पिछले दिनों दिल्ली में हो चुकी है, दूसरी होते-होते हो सकता है ये तीन विधायक भी ओपन होकर आ जाए। इसमें देखने वाली बात तो ये है कि इन सबमें सुखविंदर सिंह सुक्खू पहले नंबर पर उभरकर सामने आए हैं, जो अपने साथ विधायकों का सबसे बड़ा नंबर जोड़ने में सफल हो पाए हैं। मुकेश अग्निहोत्री के साथ एक दिक्कत इस बात की है कि उनके साथ आशा कुमारी जुड़ी हुई हैं, वो स्वयं सीएम पद की कैंडिडेट हैं। लेकिन सुक्खू के साथ इस तरह की कोई दिक्कत नहीं है, वह अकेले ही अपनी टीम में सीएम पद के कैंडिडेट हैं। रही बात विक्रमादित्य सिंह की तो उनके साथ जो तीन विधायक हैं, वो दिवंगत वीरभद्र सिंह के वक्त से साथ हैं। उनमें रामपुर से नंदलाल व रोहडू से मोहन लाल ब्राक्टा को वीरभद्र सिंह का नाम साथ जोडकर रखना चुनावी मजबूरी हो सकती है। चूंकि दोनों के क्षेत्र में राजा परिवार का नाम चलता है। ऐसे में बड़सर से इंद्रदत लखनपाल के साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीं दिख रही है। तो ये कांग्रेस के विधायकों की स्थिति है। यानी अगली परेड में सुक्खू खुद को जोडकर ये संख्या दस से 13 ना कर लें, इसमें कोई संशय नहीं दिख रहा है। लेकिन इस सबके बीच कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कहां है, कोई देख ही नहीं रहा।

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