साहित्य में सत्यांश होना आवश्यकः आर्लेकर
शिमला। राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि साहित्य का मूल स्वभाव प्रकाशन से जुड़ा है। सत्य पर आधारित जो विचार आपके मन में हैं वह प्रकाशित होकर समाज के सामने अभिव्यक्त होने चाहिए।
राज्यपाल आज यहां शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि साहित्य को अभिव्यक्ति का दर्पण कहा गया है, जो उस समय का चित्रण हो सकता है। और यही साहित्य आज की परिस्थिति का चित्रण भी करता है। समाज में जो विषय आते हैं वह साहित्य के रूप में सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि लेखन ‘स्वांत सुखाय’ नहीं होना चाहिए। परन्तु, लेखन सत्य के आधार पर होना चाहिए। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम चहेरों और तत्कालीन घटनाओं को साहित्य के माध्यम से लोगों के सामने लाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने फिल्म पटकथा को साहित्य का दर्जा देने की बात का समर्थन किया। आर्लेकर ने कहा कि साहित्य को पढ़ना जरूरी है। इसलिए पुस्तकों को पढ़ने की रूचि हमारे घर में होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ने की आदत लगाने की जरूरत है।
उन्होंने साहित्य अकादमी से अपील की कि अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव हर वर्ष शिमला में आयोजित किया जाना चाहिए। इससे पूर्व, साहित्य अकादमी के अध्यक्ष प्रो. चन्द्रशेखर कंबार ने राज्यपाल का स्वागत किया तथा साहित्य उत्सव से संबंधित जानकारी दी। साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।