ठाकुर सुखविंदर सिंह राजनीति योद्धा, बागी कांग्रेसी विधायकों की सर्वोच्च न्यायालय में 12 मार्च को सुनवाई
शिमला विमल शर्मा …..जब एक आम परिवार का आदमी किसी शीर्ष स्थान पर पहुंचता है तो वह लाखों आम परिवारों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनता है हाल ही में जिस तरह हिमाचल प्रदेश की राजनीति में ऐसा ही वाक्य देखने को मिला जब आम आदमी मैं कांग्रेस सरकार की बागडोर संभाली ही थी की विपक्षी दल के साथ-साथ कांग्रेस के ही विधायक बागी हो गए और मुख्यमंत्री को बाहर का रास्ता दिखाने की रणनीति में शामिल हो गए इसे सयोग ही कहे या फिर परमपिता परमेश्वर की कृपा की मुख्यमंत्री इस चक्रव्यूह में फंसने के बाद बाहर निकल आए बरहाल जो भी हुआ अभी स्थिति सामान्य भी नहीं कहीं जा सकती क्योंकि कांग्रेस से बागी हुए जो पूर्व विधायक हो गए हैं ने भारत की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया है जिसकी सुनवाई 12 मार्च को तय हुई है इस सुनवाई में ही तय होगा कि यह मामला वापस हिमाचल हाई कोर्ट की तरफ आता है या फिर इसमें आगे कोई नया आदेश जारी होता है बहरहाल यह तो अदालत पर निर्भर है लेकिन अब सवाल यह है और यह भी कहा जा रहा है की भारतीय जनता पार्टी का मिशन लोटस का सपना धारा का धार ना रह जाए और बाकी हुए कांग्रेस के विधायक अब भाजपा के लिए टेंशन बनते जा रहे हैं पहले इन भाग्य विधायकों को भाजपा विधायकों के साथ पंचकूला में रखा गया क्योंकि हरियाणा में भाजपा की सरकार है इसके बाद उन्हें एक विशेष विमान से उत्तराखंड वहां पर भी भाजपा की सरकार है ले जाया गया जहां वह एक पांच सितारा होटल में ठहरे हुए हैं मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह भी इन विधायकों को लेकर सार्वजनिक मंचों से इन विधायकों के बागी तेवर को लेकर जनता के जनादेश से धोखा बता रहे हैं उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी का ‘मिशन लोटस’ का सपना धरा का धरा रह गया लगता है । भाजपा के पास बहुमत नहीं है इसलिए जयराम ठाकुर मिशन लोटस के सपने न देखें। वहीं बर्खास्त बागी विधायकों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए सीएम सुक्खू ने कहा कि वे काले सांप के समान हैं। कांग्रेस के चिन्ह पर लड़े चुनाव अब पार्टी को ही धोखा भाजपा के कैंपों में कैद हो कर रहे गए हैं। जनता उन लोगों को माफ नहीं करेगी।’ हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के बाद अब उल्टा भाजपा भी टेंशन में आ गई है। हाल ही में खत्म हुए हिमाचल के बजट सत्र के दौरान व्हिप का उल्लंघन करने पर 6 कांग्रेस विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने के बाद, अब भाजपा के 7 विधायकों को भी निष्कासन की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। 28 फरवरी को सदन के अंदर हंगामा करने के आरोप में विधानसभा की विशेषाधिकार समिति ने उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है। उल्लेखनीय है कि 28 फरवरी को विधानसभा के बजट सत्र के दौरान स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया ने 15 बीजेपी विधायकों को सस्पेंड कर दिया था। इसके बाद विपक्ष ने सदन में जमकर हंगामा किया था। इस स्पीकर ने मार्शलों को निलंबित विधायक को बाहर ले जाने का निर्देश दिया था। अगर ये सभी विधायक स्थाई रूप से निलंबित हो जाते हैं तो सुक्खू को बेवजह सत्ता के लोभ में कोसने वालों की और सुक्खू सरकार को गिराने का स्वप्न देखने वालों कि क्या दुर्गति होगी इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक संकट उत्पन्न होता है तो क्या फिर से विधानसभा के चुनाव लोकसभा के साथी होंगे या फिर अलग-अलग होंगे अगर हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव लोकसभा के साथ होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी को प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का फायदा मिल सकता है लेकिन कांग्रेस चाहती है कि अगर विधानसभा के चुनाव लोकसभा के बाद होंगे तो मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह को सहानुभूति मिल सकती है और उनके द्वारा लिए जा रहे फसलों का भी फायदा मिलेगा मौजूदा समय में मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह ने जो बीते विधानसभा चुनाव में लोगों को गारंटरयां दी थी उन गारंटीयों में सबसे प्रमुख तौर पर सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली थी इसके अलावा महिलाओं को ₹1500 पेंशन देने की बात हो उसे गारंटी को भी उन्होंने पूरा किया इसके किसान बागवान और दुग्ध उत्पादकों के लिए नई योजनाएं लाकर उन्हें राहत प्रदान करने की और कदम बढ़ाया है राजनीतिक परिपेक्ष पर नजर डाली जाए तो मुख्यमंत्री के खिलाफ कांग्रेस संगठन और उनके कुछ मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने भी उनका खुलकर साथ नहीं दिया जैसा कि हाल ही में हुए राजनीतिक ड्रामे के बाद केंद्रीय पर्यवेक्षक मैं जो रिपोर्ट कांग्रेस हाई कमान के सामने रखी है वह भी आश्चर्य करने वाली है जैसा कि सार्वजनिक तौर पर समाचार पत्रों व अन्य कांग्रेस के वरिष्ठ लोगों से सामने आया है जिसमें साफ तौर पर हिमाचल कांग्रेस की अध्यक्ष सांसद प्रतिभा सिंह उनके पुत्र सरकार में कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह की कार्य प्रणाली और सार्वजनिक मंचों से सरकार के खिलाफ दिए गए बयान पर भी ऐतराज जताया गया है कुल मिलाकर सरकार और संगठन के बीच सरकार बनने स से पूर्व व बाद में 36 का आंकड़ा रहा है जो की जग जाहिर है इस द्वंद्व को रोकने के लिए किसी भी बड़े नेता ने कोई पहल नहीं की की सरकार और संगठन के बीच आपसी तालमेल बिठाया जाए और सरकार की छवि खराब ना हो लेकिन यहां तो ऐसी व्यवस्था बनी की हर बड़ा नेता अपने तक ही सीमित होकर रह गया और पूरी व्यवस्था मुख्यमंत्री पर ही छोड़ दी और संगठन में भी ऐसा ही हुआ किसी भी बड़े नेता ने कोई मशवरा नहीं दिया और पूरी व्यवस्था कांग्रेस अध्यक्ष सांसद प्रतिभा सिंह पर छोड़ दी जिसकी वजह से दोनों के बयानों में टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी अगर संगठन और सरकार के बीच वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की एक समन्वय समिति का गठन किया होता जो समय-समय पर इन दोनों नेताओं के बयान बाजी को लेकर इन्हें परामर्श देते और कांग्रेस हाई कमान के साथ निरंतर संपर्क में रहते तो हालात ऐसे पैदा ना होते अब हिमाचल कांग्रेस के बड़े नेता यह कहने लगे हैं कि हिमाचल प्रदेश की जनता के जनादेश को ठुकराने वाले बागी उम्मीदवारों को लेकर कांग्रेस की साख गिरी है और सरकार भी बैक फुट पर आई है अगर स्थिति को संभाल नहीं गया तो कांग्रेस दो दलों में विभाजित हो सकती है जो कि जनादेश के साथ ठीक नहीं होगा बहरहाल अब देखना है कि कांग्रेस बागो को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत का क्या आदेश आता है कानून के जानकारी कहते हैं कि अगर देश की सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को हिमाचल की बड़ी अदालत हाई कोर्ट को रेफर करती है तो यह मामला लंबा खींच सकता है अगर देश की बड़ी अदालत इस पर कोई फैसला देती है तो भाजपा के विधायकों पर भी गाज गिरना तय है इसका नतीजा चाहे फिर प्रदेश की जनता को चुनाव के तौर पर भुगतना पड़ सकता है