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Uncategorized जलवा व जलन के चार साल : सरकार पर आक्रामक रुख से मुकेश अग्निहोत्री बने कांग्रेसी सियासत का बड़ा चेहरा news07liveJanuary 16, 2022 Spread the love शिमला, (विमल शर्मा)। विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका में मुकेश अग्निहोत्री ने अपने चार साल पूरे कर लिए। भले ही यह सत्ता के चार साल पूरे होने के जश्न की तरह न सही, लेकिन कांग्रेस और मुकेश अग्निहोत्री की सियासत में बहुत मायने रखता है। विधानसभा में विपक्ष के नेता की कुर्सी पर बैठने के बाद मुकेश अग्निहोत्री ने हर मोर्चे में सरकार को घेरने में कामयाब नजर आए। पत्रकार से नेता बने अग्निहोत्री सियासी रणनीति बनाने में माहिर हो चुके हैं, जिससे वह सीधे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर ऐसा हमला करते हैं, जिसका जवाब सरकार के पास नहीं होता और सरकार घिरी हुई नजर आती है। विपक्ष के नेता की कुर्सी संभालने के बाद परदे के पीछे सरकार से कोई समझौता नहीं किया। अभी तक वह विधायकों को मिलने वाले फ्लेट में ही रह रहे हैं, विपक्ष के नेता के रुप में सरकार के द्वारा आबंटित कोठी लेने से इंकार कर दिया। मकसद साफ है कि विपक्षी राजनीति करनी है तो समझौतों से काम नहीं चलेगा। जनता की आवाज बुलंदी के साथ उठाई जाएगी और सरकार से जवाब मांगा जाएगा। सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख का ही परिणाम रहा कि सियासत में मुकेश अग्निहोत्री का जलवा रहा तो बढ़ते कद से नेताओं की जलन में झुलसना पड़ा, जिससे मुकेश अग्निहोत्री के विपक्ष के नेता के रुप में जलवा और जलन के रुप में चार साल के कार्यकाल को देखा जा सकता है।विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस मिशन रिपीट करने में नाकाम रही और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। विपक्ष में बैठी कांग्रेस में विपक्ष के नेता की सियासत शुरु हो गई। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह ने विपक्ष के नेता की कुर्सी संभालने में असमर्थता जाहिर की तो सेकेंड लाइन के नेताओं में विपक्ष के नेता की कुर्सी पाने की होड़ लगी। जिसमें प्रमुख रुप से मुकेश अग्निहोत्री और सुखविंदर सिंह सुक्खू मैदान में नजर आए। हाईकमान के रुख और विधायकों के समर्थन से मुकेश अग्निहोत्री को विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया। सरकार में जयराम ठाकुर ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली थी। विधायकों की संख्या कम होने के कारण शुरुआत में मुकेश अग्निहोत्री को विधानसभा में विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं दिया गया। जिससे सत्ता और विपक्ष में विवाद चलता रहा और बयानबाजी भी होती रही। आखिरकार कुछ समय बाद सरकार ने मुकेश अग्निहोत्री को विधानसभा में विपक्ष के नेता का दर्जा दे दिया। विधानसभा में विपक्ष के नेता की कुर्सी मिलना मुकेश अग्निहोत्री के सियासी भविष्य के लिए बहुत बड़ा मौका था। जिससे वह आगे की सियासत में लंबी छलांग लगा सकें। अपनी सियासी रणनीति के तहत अग्निहोत्री ने सरकार पर सीधे हमलावर रुख अपनाने का निर्णय लिया। जिससे चार साल में होने वाले हर विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को मुद्दों पर आधारित घेरने में कामयाबी हासिल की। विधानसभा के अंदर कांग्रेस के सभी विधायकों की एकजुटता बनाए रखने में भी अग्निहोत्री सफल रहे। विधानसभा सत्र शुरु होने के पहले विधायक दल की बैठक में ऐसी रणनीति बनाई जाती रही है कि सदन में सभी विधायक मुकेश अग्निहोत्री के नेतृत्व में एकजुट नजर आते रहे। हालांकि सत्ता मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित सत्ता पक्ष यही हमला करता रहा कि मुकेश अग्निहोत्री के साथ कोई विधायक नहीं है। कांग्रेस में नेता बनने की होड़ लगी है। मुख्यमंत्री ने यहां तक कह दिया कि कांग्रेस में पता नहीं कौन विधायक दल को नेता है। लेकिन सरकार के हमलों के बाद भी मुकेश अग्निहोत्री ने अपना कदम पीछे नहीं हटाया मुकेश अग्निहोत्री ने सदन के अंदर हिमाचल फॉर सेल, स्वास्थ्य विभाग में हुए भ्रष्टाचार, नेशनल हाइवे की हवा हवाई घोषणा, हवाई अड्डे के निर्माण, बेरोजगारी, कोरोना से निबटने में सरकार की नाकामी, विकास में भेदभाव, महंगाई सहित अन्य जनहित के मुद्दों को लेकर सरकार को घेरा।